Electoral Bond Kya Hota hai: आज हम बात करेंगे इलेक्टोरल बॉन्ड की, जो राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक नया तरीका है। यह एक शपथ पत्र की तरह है, जो SBI से खरीदा जाता है, और दानकर्ता इसका उपयोग अपनी पसंदीदा पार्टी को गुमनाम तरीके से दान करने के लिए कर सकते हैं। 2017 में केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन पर रोक लगाना था। लेकिन, इस योजना की वैधता को लेकर कई सवाल उठे हैं।
हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है। अदालत ने कहा कि यह योजना नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करती है और चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता कम करती है।
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम Electoral Bond Kya Hota hai के बारे में विस्तार से जानेंगे, जिसमें इसकी शुरुआत, काम करने का तरीका, और इस पर लगी रोक के कारण शामिल हैं। आइए जानते हैं Electoral Bond Kya Hota hai के बारे में पूरी डिटेल्स!
Table of Contents
Electoral Bond Kya Hota hai?
इलेक्टोरल बॉन्ड भारत सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना है जो राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका प्रदान करती है। इसे एक तरह का शपथ पत्र माना जा सकता है, जिसे स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) से खरीदा जाता है। दानकर्ता गुमनाम रहते हुए इस बॉन्ड के माध्यम से अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान दे सकते हैं। इस योजना को सरकार ने 29 जनवरी, 2018 को कानून लागू कर दिया था।
इलेक्टोरल बॉन्ड्स का समय केवल 15 दिनों का होता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को Electoral Bond के जरिये चंदा दिया जा सकता है जिन्होंने लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में वोटों का कम से कम 1 % वोट हासिल किया है। इस योजना को 2017 में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन पर लगाम लगाना था। हालांकि, गुमनाम दान प्रणाली पर सवाल उठाए गए हैं, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस योजना पर रोक लगा दी है।
Electoral Bonds List
चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी अब सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। चुनाव आयोग ने SBI से प्राप्त डेटा को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया है।
यह डेटा 2018 से 2024 तक के सभी चुनावी बॉन्ड लेनदेन का विवरण प्रदान करता है। इसमें प्रत्येक पार्टी को मिले कुल चंदे की राशि, चंदे की तारीख और चंदा देने वाली कंपनी या व्यक्ति का नाम (यदि उपलब्ध हो) शामिल है। यहां कुछ प्रमुख पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी दी गई है:
पार्टी | चंदा (करोड़ रुपये) |
बीजेपी | 6,986.5 (2019-20 में सबसे ज्यादा 2,555) |
कांग्रेस | 1,334.35 |
टीएमसी | 1,397 |
डीएमके | 656.5 |
बीजेडी | 944.5 |
वाईएसआर कांग्रेस | 442.8 |
तेदेपा | 181.35 |
सपा | 14.05 |
अकाली दल | 7.26 |
AIADMK | 6.05 |
नेशनल कॉन्फ्रेंस | 0.5 |
BRS | 1,322 |
Electoral Bonds पर लगाई गई रोक
हालाँकि, इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की वैधता को लेकर कई सवाल उठाए गए, खासकर दान गुप्त रखने की व्यवस्था को लेकर। सुप्रीम कोर्ट ने इसी मुद्दे को आधार बनाते हुए इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है।
अदालत का कहना है कि गुमनाम दान प्रणाली, अनुच्छेद 19(1)(A) का उल्लंघन करती है, जो नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है। चूंकि दानकर्ता का नाम गुप्त रहता है, इसलिए यह स्पष्ट नहीं होता कि पैसा कहाँ से आ रहा है और दान देने के पीछे क्या मकसद हो सकता है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलने का भी खतरा रहता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि जनता को यह जानने का अधिकार है कि राजनीतिक दलों को कौन और कितना पैसा दे रहा है। इलेक्टोरल बॉन्ड की गुप्त प्रणाली इस पारदर्शिता के सिद्धांत का उल्लंघन करती है।
Supreme Court holds Electoral Bonds scheme is violative of Article 19(1)(a) and unconstitutional. Supreme Court strikes down Electoral Bonds scheme. Supreme Court says Electoral Bonds scheme has to be struck down as unconstitutional. https://t.co/T0X0RhXR1N pic.twitter.com/aMLKMM6p4M
— ANI (@ANI) February 15, 2024
फैसले के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को निर्देश दिया है कि वह अब तक जारी किए गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड लेनदेन का विवरण चुनाव आयोग को सौंपे। साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 अप्रैल,2024 तक अपनी ऑफिशियल वेबसाइट पर जानकारी साझा करे ।
यह फैसला भारतीय चुनावी प्रणाली में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। यह देखना बाकी है कि सरकार इस फैसले के खिलाफ कोई अपील दायर करेगी या नहीं। साथ ही, यह भी अनिश्चित है कि भविष्य में राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए कोई नई व्यवस्था लागू की जाएगी या नहीं।
कब और कौन खरीद सकता है इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड साल में चार बार, जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर महीने में जारी किए जाते हैं। कोई भी भारतीय नागरिक जो KYC-अनुपालक बैंक खाता रखता है, वह इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है। इन्हें खरीदने के लिए, व्यक्ति को SBI की किसी भी शाखा में जाना होगा और एक आवेदन पत्र भरना होगा। आवेदन पत्र में, व्यक्ति को अपनी KYC जानकारी, जैसे कि आधार कार्ड और पैन कार्ड नंबर, और वह राशि देनी होगी जो वह इलेक्टोरल बॉन्ड में खरीदना चाहता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्य में उपलब्ध होते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने के बाद, व्यक्ति इसे अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को दान कर सकता है। दान करने के लिए, व्यक्ति को दान किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड को दान किए गए राजनीतिक दल के बैंक खाते में जमा करना होगा।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले व्यक्ति को दान किए गए राजनीतिक दल का नाम नहीं बताना होता है। यह दान गुमनाम रहता है। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को लेकर कई विवाद रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि यह योजना पारदर्शिता लाती है और चुनावी चंदे में काले धन पर रोक लगाती है। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि यह योजना गुमनाम दान को बढ़ावा देती है और भ्रष्टाचार को बढ़ा सकती है।
कैसे काम करते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड, राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक तरीका है। यह एक तरह का शपथ पत्र है, जिसे SBI से खरीदा जाता है और दानकर्ता इसे गुमनाम तरीके से अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान दे सकते हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड कैसे काम करते हैं:
खरीद: कोई भी भारतीय नागरिक जो KYC-अनुपालक बैंक खाता रखता है, वह SBI से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है।
मूल्य: इलेक्टोरल बॉन्ड 1000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्य में उपलब्ध होते हैं।
दान: दानकर्ता इलेक्टोरल बॉन्ड को अपनी पसंद के राजनीतिक दल को दान कर सकता है।
जमा: दान किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड को दान किए गए राजनीतिक दल के बैंक खाते में जमा करना होगा।
भुगतान: दान किए गए इलेक्टोरल बॉन्ड को SBI द्वारा बैंक खाते में पैसे में बदल दिया जाता है।
किसे मिलता है इलेक्टोरल बॉन्ड?
इलेक्टोरल बॉन्ड सिर्फ उन राजनीतिक दलों को मिलता है जो भारतीय चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत हैं और जिन्होंने पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट हासिल किए हैं।
इलेक्टोरल बॉन्ड प्राप्त करने के लिए, राजनीतिक दल को:
- चुनाव आयोग से एक विशेष खाता खोलना होगा।
- एसबीआई से इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदना होगा।
- दानकर्ता से इलेक्टोरल बॉन्ड प्राप्त करना होगा।
- चुनाव आयोग को दानकर्ता और दान की राशि का विवरण जमा करना होगा।
इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग:
- चुनाव प्रचार के लिए खर्च करने के लिए।
- राजनीतिक दल के कार्यालयों के लिए खर्च करने के लिए।
- राजनीतिक दल के कर्मचारियों के वेतन के लिए खर्च करने के लिए।
इलेक्टोरल बॉन्ड के लाभ:
- पारदर्शिता: चुनाव आयोग के पास दानकर्ता और दान की राशि का विवरण होता है।
- जवाबदेही: राजनीतिक दल को चुनाव आयोग को दान का विवरण जमा करना होता है।
- सुविधा: इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदना और दान करना आसान है।
- गुमनाम: दानकर्ता का नाम गुप्त रहता है।
इलेक्टोरल बॉन्ड की कमियां:
- भ्रष्टाचार: कुछ लोगों का कहना है कि गुमनाम दान भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता है।
- पारदर्शिता: कुछ लोगों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में पर्याप्त पारदर्शिता नहीं है।
कब और क्यों की गई थी शुरुआत?
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की शुरुआत 2017 में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने की थी। यह योजना 2018 में लागू हुई थी।
उद्देश्य:
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के निम्नलिखित उद्देश्य थे:
- चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाना: इलेक्टोरल बॉन्ड दानकर्ता का नाम गुप्त रखते हैं, लेकिन चुनाव आयोग को दान किए गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड का विवरण सार्वजनिक करना होता है।
- काले धन पर रोक लगाना: इलेक्टोरल बॉन्ड केवल KYC-अनुपालक बैंक खातों के माध्यम से खरीदे जा सकते हैं, जिससे काले धन का इस्तेमाल करने में मुश्किल होगी।
- चुनावी चंदे में नागरिकों की भागीदारी बढ़ाना: इलेक्टोरल बॉन्ड को आसानी से खरीदा और दान किया जा सकता है, जिससे नागरिकों के लिए चुनावी चंदे में भाग लेना आसान हो जाएगा।
- राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वैकल्पिक तरीका: इलेक्टोरल बॉन्ड, राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वैकल्पिक तरीका प्रदान करते हैं, जो नकद या चेक के माध्यम से दान करने से अधिक पारदर्शी और सुरक्षित है।
- राजनीतिक दलों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करना: इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को बड़े दानदाताओं पर कम निर्भर बनाते हैं, जिससे उन्हें अधिक स्वायत्तता प्राप्त होती है।
- चुनावी सुधारों को बढ़ावा देना: इलेक्टोरल बॉन्ड चुनावी सुधारों को बढ़ावा देने का एक प्रयास है, जिससे चुनावी प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बन सके।
निष्कर्ष
इलेक्टोरल बॉन्ड, राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक नया तरीका है, जिसके फायदे और नुकसान दोनों हैं। यह योजना अभी भी प्रारंभिक चरण में है। यह देखना बाकी है कि यह योजना चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने और चुनावी सुधारों को बढ़ावा देने में कितनी सफल होगी।
यह महत्वपूर्ण है कि हम इस योजना के बारे में सभी पहलुओं पर विचार करें और एक बेहतर चुनावी प्रणाली के लिए मिलकर काम करें। ऐसे आर्टिकल पढ़ने के लिए हमारे बिजनेस पेज से जुड़े रहें।